Friday, September 19, 2014

साहब के लिए भी आदिवासी झींगा ला ला हुर्र हुर्र ही हैं.


'अरण्येर दिनरात्रि' यानी जंगल में दिन-रात. पर शीर्षक से यह मत समझ लिजिएगा कि यह जंगल के लोगों की कहानी है. सत्यजीत रे के इस जंगल में चार दोस्त हैं जो शहरी जीवन से उब कर जंगल जाते हैं. पर वे वहां क्या करते हैं, उसे इस चित्र में देखिए. साहित्य हो या सिनेमा गैर-आदिवासी दृष्टि यही है. तो रे साहब के लिए भी आदिवासी झींगा ला ला हुर्र हुर्र ही हैं.

'अरण्येर दिनरात्रि' यानी जंगल में दिन-रात. पर शीर्षक से यह मत समझ लिजिएगा कि यह जंगल के लोगों की कहानी है. सत्यजीत रे के इस जंगल में चार दोस्त हैं जो शहरी जीवन से उब कर जंगल जाते हैं. पर वे वहां क्या करते हैं, उसे इस चित्र में देखिए. साहित्य हो या सिनेमा गैर-आदिवासी दृष्टि यही है. तो रे साहब के लिए भी आदिवासी झींगा ला ला हुर्र हुर्र ही हैं.
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